सोशल मीडिया पर किसी बात को लाइक करना, किसी को फोलो करना या फिर किसी को टैग आजकल बेहद आम है। सोशल मीडिया आज हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बनता जा रहा है। सुबह उठने से लेकर गुड नाइट तक हम सोशल मीडिया की वर्चुअल दुनिया में होते हैं। कहते हैं किसी भी चीज की अति बुरी होती है। ऐसे में भला सोशल मीडिया का बढ़ता दायरा हमारे जीवन को कैसे घातक बना रहा है ये भी किसी से छुपा नहीं है। आपने अक्सर ही फेसबुक पर किसी बात को लेकर किसी को किसी का विरोध करते हुए देखा। कई बार ये विरोध इतना ज्यादा बढ़ जाता है कि मामला कोर्ट कचहरी तक पहुंच जाता है। क्या आपने कभी सोचा है कि हम लोग कई बार बिना किसी को जाने पहचाने, बिना मिले ही उसके बारे में अपनी राय कैसे बना लेते हैं। क्या महज कमेंट करने से हमे गुस्सा आने लगता है।

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आखिर क्या कारण है कि हम वर्चुअल दुनिया में बहस करने लगते हैं। कुछ इन्ही बातों को लेकर साइकॉलजिककल साइंस जर्नल में छपे एक पेपर के मुताबिक आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में हम छोटी-छोटी बातों को लेकर तनाव में जाते हैं। वर्क लोड़ और सामाजिक जरुरतों को पूरा करते – करते हमने हंसना छोड़ दिया है ।

#2.


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ऐसे में सोशल मीडिया पर किसी को ट्रोल करने, किसी की बात को डिसलाइक करना हमारी आदत में शुमार होता जा रहा है। ऐसे में अगर सामने वाला हमारी नाराजगी पर सवाल पूछने लगे तो हम खिज जाते हैं। इसीलिए अगर आप चाहते हैं कि किसी बहस के मुद्दे पर लोग आपको ज्यादा सपॉर्ट करें तो आप बातें उन्हें लिखकर कम्युनिकेट करने के बजाय बोलकर कम्युनिकेट करें।

#3.


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साइकॉलजिककल साइंस जर्नल 300 लोगों से वॉर, अबॉर्शन और अलग- अलग तरह के म्यूजिक के आर्गयुमेंट्स को सुनने और देखने के लिए कहा गया। इसके बाद उनसे पूछा गया कि कौन सा आर्ग्युमेंट ज्यादा अच्छी तरह समझ में आया, तो इनका जवाब बेहद चौकांने वाला था। वैज्ञानिकों ने बताया कि जो लोग आर्ग्युमेंट से असहमत थे उनका रुख डिबेट करने वाले के प्रति अमानवीय था और ऐसा उस केस में बहुत कम हुआ जब उन्होंने डिबेट करने वाले को देखा या सुना। इस रिपोर्ट के अनुसार लोगों के जीवन में बढ़ते तनाव का असर न सिर्फ उनकी सोशल लाइफ पर बल्कि सोशल मीडिया पर भी पडता नजर आ रहा है।